Tuesday 30 March 2021

ककोलत जलप्रपात : बिहार का कश्मीर


ककोलत एक ऐसा नाम जो नॉस्टैल्जिया बन चुका है अब। जो लोग नवादा के रहने वाले हैं या बिहार से जुड़े हैं उन्हें बताने की जरूरत नहीं कि ककोलत क्या है, पिछले कुछ वर्षों में जब भी बिहार और पर्यटन का नाम साथ में आता है तो ककोलत जलप्रपात का नाम जरूर लिया जाता है । बिहार के नवादा जिले में गोविंदपुर विधानसभा के अंतर्गत आता है एकतारा गांव और उसी गांव के आसपास सुरम में पहाड़ियों के बीच में एक बड़ा ही मनोरम झरना है इसे बिहार का कश्मीर भी कहा जाता रहा है नाम हुआ ककोलत जलप्रपात। जिला मुख्यालय नवादा से 33 किलोमीटर दूर, एनएच 31 (फतेहपुर मोड़) से करीब 16-17 किलोमीटर दूर यह जलप्रपात ठंडे पानी का झरना है जिसकी ऊंचाई करीब 160 फुट है लेकिन प्रसिद्धि में इसका नाम काफी ऊंचा रहा है। हरे भरे पहाड़ों के बीच में यह झरना न केवल गर्मियों में लोगों को राहत देती है बल्कि आंखों को भी ठंडक पहुंचांती है। झरने में साल भर ठंडा पानी बहता रहता है जो कि नीचे एक विशाल जलाशय में जमा होकर फिर नीचे गांव की ओर बह जाती है लेकिन ककोलत जलप्रपात में सैलानी फरवरी से आना शुरू हो जाते हैं जो कि बरसात आने तक लगातार आते ही रहते हैं। इस इलाके में आने मात्र से ही ठंडक महसूस होने लगती है एक अजीब तरह की संतुष्टि मिलती है जिसका वर्णन केवल वहां जाकर ही किया जा सकता है शब्दों में करना मुश्किल है। स्थानीय लोग और दूर-दूर के सैलानी अपने प्राइवेट वाहनों से परिवार के साथ पिकनिक मनाने के लिए आते हैं और झरने के शीतल जल में स्नान करके स्वयं को तृप्त करते हैं। लोगों के मानस में रचा बसा झरना उनके मन मस्तिष्क में एक मीठी याद बनकर रहती है। ककोलत जलप्रपात न केवल पर्यावरण के रूप से महत्वपूर्ण है बल्कि ऐतिहासिक रूप से भी जिले में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।







इस झरने के संबंध में एक पौराणिक आख्‍याण काफी प्रचलित है। इस आख्‍याण के अनुसार त्रेता युग में एक राजा को किसी ऋषि ने शाप दे दिया। शाप के कारण राजा अजगर बन गया और वह यहां रहने लगा। कहा जाता है कि द्वापर युग में पाण्‍डव अपना वनवास व्‍यतीत करते हुए यहां आए थे। उनके आशीर्वाद से इस शापयुक्‍त राजा को यातना भरी जिन्‍दगी से मुक्‍ित मिली। शाप से मुक्‍ित मिलने के बाद राजा ने भविष्‍यवाणी की कि जो कोई भी इस झरने में स्‍नान करेगा, वह कभी भी सर्प योनि में जन्‍म नहीं लेगा। इसी कारण बड़ी संख्‍या में दूर-दूर से लोग इस झरने में स्‍नान करने के लिए आते हैं। वैशाखी और चैत्र सक्रांति के अवसर पर विषुआ मेले का आयोजन किया जाता है।इस अवसर पर अनेकों गाँव तथा अन्य लोग भी यहाँ आते है। इस मेला को ककोलत आने का औपचारिक शुरूआत भी माना जाता है,,क्योंकि यह गर्मी के शुरूआत में मनाया जाता है। (Wikipedia से)


ककोलत जलप्रपात हाल के वर्षों में अपनी बदहाली पर भी रो रहा है। ककोलत जलप्रपात के प्रसिद्धि के कारण मुख्य धारा के सैलानी लगातार बड़ी संख्या में हम पहुंचने लगे हैं ऐसे में मूलभूत सुविधाओं के अभाव में उन्हें काफी परेशानी हो रही है। साफ सफाई एवं सुरक्षा तो मुख्य मुद्दा रहा ही है लेकिन महिलाओं के लिए एक चेंजिंग रूम का मांग कई वर्षों से जारी है वहीं दूसरी ओर ककोलत में टॉयलेट की सुविधा अभी तक उपलब्ध नहीं हो पाई है जोकि एक मूलभूत आवश्यकता है।स्थानीय लोग तथा सैलानी सोशल मीडिया पर इस संबंध में लगातार आवाज उठाते रहे लेकिन प्रशासन और सरकार के दिलासा के अलावा ककोलत को कुछ नहीं मिल पाया है। अभी 2 वर्ष भी नहीं हुए जब बिहार सरकार एवं जिला प्रशासन ने ककोलत को ईकोटूरिज्म हॉटस्पॉट बनाने का भरोसा दिया था जिससे कि स्थानीय लोगों के जीविका में सुधार होता एवं युवाओं को रोजगार मुहैया होता किंतु इस और प्रयास बिल्कुल भी नहीं किया गया खैर इन सब के बावजूद ककोलत का आकर्षण हमेशा ही बना रहता है और बना रहेगा।
जो लोग पहले कभी भी ककोलत नहीं आ पाए हैं उनके लिए निम्न मार्ग है-
वायु मार्ग
यहां का निकटतम हवाई अड्डा गया में है। लेकिन यहां वायुयानों का नियमित आना जाना नहीं होता है। इसलिए वायु मार्ग से यहां आने के लिए पटना के जयप्रकाश नारायण हवाई अड्डा आना होता है। यहां से सड़क मार्ग द्वारा ककोलत जाया जा सकता है।

रेल मार्ग
नवादा में रेलवे स्‍टेशन है जो गया - क्यूल रेलखंड से जुड़ा हुआ है। गया जंक्‍शन रेल मार्ग द्वारा देश से सभी शहरो से जुड़ा हुआ है। कोडरमा स्टेशन से भी बस पकड़ कर थाली मोड़ आया जा सकता है।

सड़क मार्ग
राष्‍ट्रीय राजमार्ग 31 पर स्थित होने के कारण ककोलत देश के सभी भागों से सड़क मार्ग द्वारा अच्‍छी तरह से जुड़ा हुआ है। फतेहपर से 18 किलोमीटर की यात्रा में 15 किलोमीटर तक सार्वजनिक वाहन मिल जाते है,,आखिर के तीन किलोमीटर जो थाली मोड़ से शुरू होता है।


ककोलत जलप्रपात से जुड़ी यह जानकारी आपको कैसी लगी आप मुझे कमेंट बॉक्स में बताएं या फिर ईमेल करें। साथ ही ककोलत के साथ जुड़े आपके यादों को भी मैं पढ़ना चाहूंगा समझना चाहूंगा आप चाहे तो उसे भी बता सकते हैं। आपका प्रशांत

 

Sunday 28 March 2021

बिहारीपन पर एक टिप्पणी मेरी ओर से

 



लोगों ने हर चीज को अपने हिसाब से बदलने का स्वभाव बना रखा है, खैर इस पर कोई क्या कर सकता है जो आप खुद ही नहीं चाहे की प्रगति हो और दिखावा भी करें कि समाज का विकास हो तो संभव है की दूध से दही तो बन जाए किंतु घी निकालना मुश्किल है।

लोगों ने बिहार को एक अलग ही मानसिकता से ग्रसित प्रदेश मान लिया है बिहारी होना अब गर्व का बात तो है किंतु यह एक अलग ही रूप लेता नजर आ रहा है।
खैर यह सब बहुत बड़ी बातें हैं किंतु पिछले कुछ दिनों के घटनाओं से मैं थोड़ा अप्रसन्न हूं। लेकिन मेरे अकेले के अप्रसन्न होने से क्या हो जायेगा? 11 करोड़ से ऊपर की जनसंख्या है बिहार की एक आध हजार लोग अप्रसन्न है भी तो कोई बड़ी बात नहीं । लेकिन इन घटनाओं की वजह से बिहारी समाज का असली चेहरा बाहर वालों के बीच में आ रहा है और वह सोचते हैं कुत्ता का पूंछ टेढा का टेढा ही रहेगा।
भागलपुर विश्वविद्यालय में एक प्रोफ़ेसर को स्थानीय गुंडों ने या कहूं प्रगतिशील लोगों ने अकारण ही पीट दिया हैरत की बात यह है कि यह सब बिहार बंद के नाम पर किया गया है और बंद का सबसे बड़ा समर्थक विश्वविद्यालय के छात्र ही होते है किंतु अगर विश्वविद्यालय बंद का समर्थन नहीं कर रहा तो समझिए कि बंद का कारण सही नहीं है या सही से समझ नहीं पा रहे हैं। वहां पर उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वह बंद का कारण समझाएं और उन्हें साथ में ले ना कि अहिंसा का प्रयोग कर माहौल को और बिगाड़े। खैर उन्हें समझाना मतलब गोइठा में घी सुखाना है लेकिन बिहार के अन्य लोग क्यों चुप है इस मामले में?
बिहार के 38 जिलों में दो-तीन जिले ही थोड़ा सा राजनीति और समाज को साथ लेकर आगे बढ़ रहे हैं बाकी सब तो खाने कमाने में ही व्यस्त हैं और उन जिलों में भागलपुर का नाम आता है भागलपुर विश्वविद्यालय में एक प्रोफेसर अगर मुंबई से नौकरी छोड़ कर के पढ़ाने आ रहे हैं तो समझिए कि समाज में बदलाव की बयार आई है किंतु उस प्रोफेसर के साथ ऐसा बर्ताव होने के बाद भी अगर लोग चुप हैं तो समझिए कि समाज भी दिखावा करने में माहिर है जिधर ज्यादा फायदा उधर का समर्थन बंद हो या विधानसभा में हो-हल्ला वे अपने स्तर पर तय करते हैं कि किस को समर्थन देना है चलिए यह भी ठीक है लेकिन एक बात तय मानिए कि यह सब बिहार की छवि को और बिहार के भविष्य को दांव पर लगाता है।
प्रशांत