Friday 6 April 2018

रजौली परमाणु बिजलीघर के विरोध में पहला कदम




पिछले कई वर्षों से सरकारी और गैर-सरकारी सूत्रों से कहा जा रहा है कि 'रजौली' में परमाणु बिजलीघर बनेगा। जब कभी भी ऐसी खबर आती थी तो लोगों में कई तरह की चर्चाएं चल पड़ती थी। जैसे कि परमाणु बिजलीघर बनना चाहिए या नहीं। बनने से क्या फायदे हैं और क्या नुकसान इन बातों पर चर्चा केंद्रित होता था। लोगों को कई बार "कब बनेगा?" यह पूछते हुए सुना है मैंने। कैसे बनेगा और क्यों बनना चाहिए इन बातों पर शायद ही किसी का ध्यान जाता था। आमतौर पर लोग इसे चुनावी घोषणा या वादा समझते थे और फिर भूल जाते थे परन्तु अख़बारों में रह रहकर इससे सम्बंधित खबरे छपती रहती थी, लोग भी बड़े ध्यान से एक-एक शब्द पढ़ते, चर्चाएं करते। राजनीति से जोड़ने वालों की कमी तो खैर पुरे इलाके में नहीं है।कुछ दिनों बाद फिर वही दुनियादारी में लोग मग्न हो जाते। 
पॉवरप्लांट 'रजौली' को देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रसिद्धी दे रहा है। मैंने कई बार गौर किया है कि जब भी कोई मुझसे मेरा पता पूछता है और मैं रजौली बताता हूँ तो उनमे से कुछ अगला सवाल डालते हैं 'परमाणु पॉवरप्लांट' वाला रजौली न ! इसपर मेरा उत्तर उतना उत्साहजनक नहीं होता है पर हाँ जरूर कहता हूँ। इसका कारण समय के साथ अलग अलग रहा है। 
मुझे याद है शायद 2011-12 की बात थी 'रजौली' में न्युक्लीअर पॉवरप्लांट बनाने के लिए लगातार बिहार सरकार और केंद्र सरकार में बातें हो रही थी। उस समय स्थानीय लोग काफी रुची ले रहे थे। उसके बाद फिर कई महीनो तक कोई बात नहीं हुई। बीच-बीच में फिर बातें होने लगी पर मैंने उतना ध्यान नहीं दिया। कभी खबर आती कि अधिकारियों का एक समूह क्षेत्र का जायजा लेने आया है तो कभी खबर आती की फुलवरीआ डैम में पानी की कमी के कारण प्रोजेक्ट लटक गया है। फलाना- ढेकाना और पता नहीं क्या-क्या।  
आज जब मैंने फिर से इससे सम्बंधित खबर पढ़ी कि  "न्यूक्लियर पॉवर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआईएल) ने नवादा में परमाणु बिजलीघर स्थापित करने का प्रस्ताव दिया है। इस परियोजना पर करीब 70 हजार करोड़ रुपए का निवेश होगा। उद्योग मंत्री जय कुमार सिंह ने कहा कि राज्य सरकार ने इसके लिए एक हजार एकड़ जमीन चिह्नित कर दी है।एनपीसीआईएल के प्रस्ताव पर ऊर्जा विभाग मंथन कर रहा है और जल्द ही निर्णय लिया जाएगा।" तो लगा कि जो खिचड़ी बहुत दिनों से दिमाग में पक रही थी वह तैयार है। तुरंत समझ में आया कि आखिर क्यों ये सब हो रहा था और कब तक हो सकता है। दिमाग में गुबार की तरह कई प्रश्न उठे और अगले ही क्षण उनका उत्तर भी मिल गया। मेरे लोगों को कितना फायदा होगा और कितना नुकसान इसका अंदाजा भी लगाया। नफा तो खैर सबको दिख रहा है पर नुकसान पर लोग आखें मुंड ले रहे है। मैं रजौली का बेटा हूँ और बचपन से ह्रदय में रजौली बसा है। मैं जानता हूँ कि मेरे रजौली का नुकसान हरगिज नहीं होना चाहिए, नफा हो या न हो। बेचैन मन से यह सब लिख रहा हूँ, कोशिश करूँगा कि कभी शांत मन से इसे आसान भाषा में लिखूं और क्षेत्र के हर आदमी तक पंहुचा दूँ। लेकिन तब तक जो इसे पढ़ रहे हैं उनसे निवेदन है कि वे मेरा साथ दें रजौली में परमाणु बिजलीघर के विरोध हेतु। 

आपका   

प्रशांत 
(prashantsamajik@gmail.com)