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Wednesday, 28 March 2018

एक जवान और चला गया

मैं कभी उनसे मिला नहीं। मिलना तो दूर, कभी देखा तक नहीं। न ही सोशल मीडिआ पर ही मुलकात हुई कभी। फिर भी मेरा मन इतना विचलित क्यों है? जब से दुर्घटना की खबर मिली, क्या ऐसा है जो अभी तक परेशान कर रहा है मुझे ? क्या यह बात कि वे मेरे गांव के लोगो की सुरक्षा के  लिए आये थे या फिर यह बात कि वह भी मेरी तरह किसी माँ का दुलारा होगा जो घर चलाने के लिए बाहर नौकरी कर रहा था। मैं नहीं जानता कि मेरा नादान मन क्यों उस जवान के लिए रो रहा है।
कल दोपहर सोशल मीडिया पर कहीं पढ़ा कि बी एम् पी जवानों के बस (जो की रजौली में रामनवमी के जुलुस को शांतिपूर्वक संपन्न कराकर लौट रहे थे ) और एक ट्रक में टक्कर हुई और बस में बैठा प्रत्येक जवान बुरी तरह से घायल हो गए। एक की मौत की सुचना थी। मेरे लिए यह कोई नयी खबर नहीं था,रोज टक्कर होता है उस कातिल सड़क पर, रोज लोग घायल होते हैं। रोज किसी परिवार का कोई अपना अस्पताल में पहुँचता है। लोग थोड़ी देर मायूस होते हैं फिर अपने-अपने काम में व्यस्त हो जाते हैं। लेकिन कल मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ , मैंने दूसरी बार सर्च किया और कई न्यूज एजेंसिओं के खबर पढ़े। दुर्घटना करिगांव मोड़ के पास हुई थी। 26 जवान घायल हुए जिनमे 16 की हालत गंभीर बानी हुई है और एक जवान की मृत्यु हो गयी। उनका नाम आकाश कुमार है, वे बीएमपी 3 का जवान थे। 2 साल पहले ही उनकी नौकरी लगी थी। अख़बार में पढ़ा कि वे अपने परिवार के अकेले कमाई करने वाले थे। आकाश बेगुसराय के तेघड़ा का निवासी थे। उनकी मृत्यु की खबर उस शहर को गमगीन कर गया। न जाने उनकी माँ पर क्या बीत रही होगी। उनके पिता और भाई-बहनों का क्या हाल हो रहा होगा?
शाम होते-होते खबर मिली की जवानों के सामने जब नवादा पुलिस लाइन में जब आकाश के पार्थिव शरीर को सलामी दी जानी थी तब उके शव को तिरंगे में न लिपटा देखकर, उनके साथी बर्दाश्त नहीं कर सके। वे काफी भावुक थे और जैसे ही मेजर रामेश्वर दिखे, उनपर बिफर पड़े। हाथापाई करने के बाद दौड़ा-दौड़ाकर पीटा। जवानों ने कहा कि 'दुर्घटना के बाद मेजर को कई बार फ़ोन किया गया पर पहले तो उन्होंने फ़ोन ही नहीं उठाया और फिर संसाधनों की कमी की दुहाई देने लगे, अगर समय पर सहायता पहुँचती तो शायद तो शायद हमारे साथी की जान बचाई जा सकती थी।' अन्य अधिकारीयों के समझाने पर वे शांत तो हो गए परन्तु हमारे लिए प्रश्न जरूर छोड़ गए कि क्या उनका गुस्सा करना अनुचित था ?


नवादा एसपी विकाश वर्मन ने बाद में कहा यह घटना दुर्भाग्यपूर्ण है.पुलिस बहुत ही सीमित संसाधन के बीच काम करती है। रामनवमी के जुलुस के कारण सभी लोगो की ड्यूटी विभिन्न जगहों पर बटी होने के कारण सहायता पहुंचाने में देरी हुई।
मेरा प्रश्न है कि अगर आपके पास संसाधनों की कमी है तो उसकी वजह से हमारे जवान क्यों मारे जाये ? यह पुलिस का और प्रशासन की जिम्मेदारी थी कि किसी भी हाल में सहायता पहुंचाई जाये।  जो जवान घायल हुए उन्हे रजौली और नवादा सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया फिर पीएमसीएच रेफर कर दिया गया। क्या यह जवानों के जीवन से खेलना नहीं है ? कोई भी सुविधा नहीं है इन अस्पतालों में सिवाय रेफर करने के तो फिर क्यों सरकार और प्रशासन इसमें सुविधाएँ मुहैया नहीं करवाती ? क्यों कभी जाँच नहीं की जाती ?
केवल दोष प्रशासन का हो यह भी पूरी तरह से सत्य नहीं है। हमलोग जिसकी सुरक्षा के लिए वे जवान अपने घर में त्यौहार न मनाकर दिनभर एक बेगाने गांव में तैनात रहा, कौन से दूध के धुले हुए हैं ? क्या समाज को इतनी भी अक्ल नहीं कि पर्व-त्यौहार कैसे मनाना चाहिए और कैसे अपने दायित्व निभाकर घायल व्यक्ति की सेवा करनी चाहिए ?