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Saturday, 18 April 2020

रजौली संगत से जुडी यादें

रजौली संगत: पीछे की तस्वीर 

आज सुबह जब मैं सब्जी लाने जा रहा था तो न जाने क्या मन में हुआ मैंने फोन निकाला और संगत की फोटो खींच ली एक नहीं तीन चार फोटो। सब्जी लेकर सीधे घर आने के बजाय मैं देवी अस्थान होते हुए संगत का बाहर से दीदार करते हुए आया। अभी एक घंटा पहले जब मैंने लिखना शुरू किया तो ध्यान हुआ कि आज विश्व विरासत दिवस मनाया जा रहा है, यह मात्र इत्तेफाक है या कुछ और यह तो मालूम नहीं पर रजौली संगत के बगल से मैं जब भी गुजरता हूं तो एक स्वप्न मेरे मन में अवश्य आता है कि किसी दिन यह संगत भी एक विरासत के रूप में देश भर के लोगों के लिए उपलब्ध होगा। हालांकि यह कपोल कल्पना नहीं है क्योंकि मैं जानता हूं भले ही लोग अभी इस संगत के रखरखाव के प्रति उतने सचेत नहीं हो परंतु यह संगत अवश्य लोगों को आपस में जोड़ने की शक्ति रखता है। जब मैं स्कूल में पढ़ता था तो संगत आना जाना लगा रहता था उन्हीं दिनों मैंने कई जानकारियां जुटाई इसके बारे में विकिपीडिया पर कुछ संशोधन भी किया है मैंने अखबारों में लगातार छोटे-छोटे लेख लिख कर भेजे थे एकाद छपा भी है। फेसबुक और ट्विटर पर तस्वीरें डाली है सरकारों से इसके रखरखाव की मांग की है, गूगल मैप्स से शुरुआती तस्वीरों में मैंने ही डाली थी यह सोचकर कि जब नालंदा का खंडहर प्रसिद्ध है तो कम से कम यह संगत रजौली का नाम ऊंचा करेगा। दोस्तों से तो इस संबंध में अनगिनत बातें की है मैंने मैंने वैसे यह केवल मेरी यादों में नहीं है मैंने संगत को जिया है आप पूछ सकते हैं कि कोई कैसे जी सकता है एक स्थल को तो मैं कहूंगा कि जैसे मगहिया पान में लाली छुपी होती है वैसे ही मेरे साथ संगत बसा है। हां इधर कुछ वर्षों में पता नहीं क्यों संगत की ओर जाता नहीं था पर आज वो यादें फिर से ताजा हो गई है दिल से टीस फिर उठी है कि कैसे रजौली के इतने सारे बेटों के रहते हुए संगत अपनी बदहाली पर इतने दिनों से रोता आया है इसकी छत गिरने लगी है दीवारों में दरार आ चुकी है आसपास के जमीन को लोग हथियाने में लगे हुए हैं और हर जगह गंदगी का अंबार लगा हुआ है कुआं भरने वाला है और दरवाजे कमजोर होने लगी है जो कुछ भी बाबा श्रीचंद के नाम पर था वह तो कब का भुलाया जा चुका है कीमती वस्तुएं पता नहीं किसने चोरी की है गुरु नानक देव और उनके प्रथम सुपुत्र श्री चंद बाबा का विचार तो शायद ही लोग कभी अपना पाए हो, हैरानी तो इस बात की है कि संगत को भी पराया ही समझा है लोगों ने।
इस संगत का अपना ही इतिहास रहा है और कई कीवदंतिया भी प्रचलित है इसके बारे में जैसे बचपन में हम बच्चे आपस में बातें करते थे की बहुत बड़े शेर पर राजा की सवारी निकलती थी संगत के मुख्य द्वार से हालांकि अब लगता है कि यह सच तो कतई नहीं हो सकता होगा पर फिर भी शान ओ शौकत का एक छोटा सा हिस्सा तो जरूर रहा होगा।

आपका प्रशांत