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Friday, 30 March 2018

आखिर क्यों जला मेरा नवादा ?

पहले भागलपुर और समस्तीपुर जला फिर औरंगाबाद होते हुए नालंदा और अब मेरा गृह जिला नवादा इसकी चपेट में है। मैं लिखना नहीं चाहता दंगा-फसाद पर किन्तु आज मजबूर हूँ कलम उठाने को। कोई भेड़िया बहुत ही चालाकी से लोगों के धार्मिक भावनाएं भड़काने में कामयाब हुआ है। समाज बटकर आपस में लड़ने को तैयार है। अगर यह युद्ध होता तो बेझिझक मैं मैदान में होता पर जानता हूँ ये साजिश है, मेरा घर जलाने की।किसी को अपने घर में लड़ाई करवाते मैं नहीं देख सकता। बेबस हूँ यह भी सोचकर कि भविष्य का नवादा पूछेगा कि कैसा समाज तैयार किया है आपने। परंतु फिर भी यह जरूर कहुंगा कि 'जो है इन सबके पीछे, भले आज कामयाब हो जाओ पर कल तुम्हें घुसने न दुंगा अपने घर।'

सुबह जैसे ही व्हाट्सप्प खोला तो कई ग्रुप में हनुमान जी की टूटी हुई मूर्ति वाली तस्वीर थी और साथ में लिखा हुआ था - 'बिहार  के नवादा जिले के गोंदापुर में विशेष समुदाय के लोगो द्वारा बजरंग बलि की मूर्ति को खंडित किया गया। जिसमे हिन्दू समुदाय के लोगो में काफी गुस्सा है। जिले में सांप्रदायिक हिंसा भड़काने की आशंका है।' फेसबुक पर भी अपने आप को न्यूज़ चॅनेल मानने वाले लोगों और पेजों ने कई तरह के लिंक डाल रखे थे। उसके बाद लोगों ने जाकर राष्ट्रिय राजमार्ग 31(NH31) जाम कर दिया, तब जाकर प्रशासन हरकत में आयी। परन्तु ये क्या नवादा के आला पुलिस अधिकारियों के पहुंचने के बाद भी नवादा जला। कुछ रिपोर्टरों जब पहुंचे तो उनके कैमरों और माइक को कुछ दंगाई युवकों ने तोड़ दिया। 

दुकान के सामने लगे बाइक व जनरेटर में लगाई आग 



आखिर कौन थे वे जो चिंगारी भड़काने के बाद नेपथ्य में चले गए और आग को बढ़ते हुए देख खुश हो रहे थे? जनता कयास ही लगाते रह जाती है और नेता(लोग उन्हें नेता मानते हैं, मैं नहीं) अगली चाल चलकर आम जनता को आपस में लड़वाने में कामयाब हो जाते हैं।  एक बार चिंगारी निकली फिर सोचने का अवसर कहाँ मिलता है लोगो को। तुरंत दो गुट बन जाता हैं और अगर नहीं बन पाता है तो तथाकथित नेता अपने आदमी भेजकर लोगों को भड़काने सफल हो जाते हैं।  फिर दुकाने जलती है, गाड़ियों के शीशे टूटते हैं , पत्थरबाजी होती हैं। तलवारें निकलती है और गोलियां चलती है। मुहल्लों में धुएं दिखने लगते हैं , हर तरफ चीख-पुकार और अफरा-तफ़री का माहौल। जो शहर एक दिन पहले गुलजार था वो अब खँडहर नजर आने लगता है। 
किसी ने पूछ लिया लिखते वक़्त कि प्रशासन क्या करता है, प्रशांत बाबू? 
मैं कहता हूँ तुम ये प्रश्न मुझसे क्यों पूछते हो ? पूछों न जाकर उन्ही से, अगर कोई जवाब मिले तो हमें भी बताना। उसके पुनः रिक्वेस्ट करने पर मैंने वही बताया जो सबको मालूम होता है पर कोई मनन नहीं करता। प्रशासन रहता है सरकार के दबाव में और अपनी शक्ति में फुला हुआ।पहुँचता है आराम से, तब तक कोई मारा जाता है या असली अपराधी भागने में कामयाब हो जाता है। दुर्भाग्य हमारा की हम सरकार और प्रशासन पर ऐसे विश्वास कर लेते हैं, जैसे सांप को कोई फूल माला समझ बैठे।ये भी तो सोचना चाहिए कि हम शंकर भगवान तो नहीं है। 

दंगा फ़ैलाने वाले मौज कर रहे हैं, कहना न होगा कि इसमें राजनीतिक स्वार्थ छिपा हुआ है। बिना हम ये पहचाने कि दुश्मन कौन है हम तलवार भांजने निकल पड़ते हैं और अपने ही लोगों पर वार करते हैं। आखिर एक दिन दंगा शांत होता हैं और फिर बचता है तो केवल पछताने के लिए समय।किसी परिवार के लिए जीवन भर का दुःख और दर्द। परन्तु फिर भी बहुत हद तक हम कोशिश करते हैं अपने उजड़े शहर को बसाने की, लोगों से मिलकर अपने दुःख-दर्द बाटने की क्योंकि आखिर में तो हमें अपने ही समाज में रहना हैं।