Saturday 1 August 2020

प्रकृति का प्रिय राज्य झारखण्ड : एक रिपोर्ट


2018 koderma ghati

  

झारखंड अपने विशाल जंगलों के लिए  जाना जाता है। झारखंड का नाम ही इसलिए पड़ा क्योंकि इसके हर हिस्से में जंगली झाड़ उपलब्ध है। वैसे तो सम्पूर्ण झारखण्ड पेड़, पौधो और कई प्रकार के संख्या में कम बचे जीव जन्तुओ से पटा पड़ा है पर सरकार की उम्दा कोशिशो से कुछ स्थानो को बहुत पहले हीं संरक्षित करने का कार्य शुरु कर दिया गया था जिसके कारण इन वन अभ्यारणों की खूबसूरती बरकरार हैं। ये जंगल झारखण्ड को प्रकृति की और से उपहार है, इसके जंगलों में तरह तरह के वनस्पति और प्राणियों का निवास है, डाटा रिपोर्ट्स के अनुसार करीब दो सौ प्रकार के पंक्षियों का बसेरा है झारखण्ड। मुख्य वनस्पति प्रकार है : कटहल , केन्दु ,महुआ , शीशम , गंभार, बहेड़ा , जामुन, कथा , लाख आदि वहीँ राज्य में हाथी, लोमड़ी, गौर, सियार, बाघ ,लंगूर, हिरण, पाइथन,खरगोश , नीलगाय ,जंगली बिल्ली आदि वन प्राणियों का निवास है।

झारखण्ड के उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों की बात करें तो पलामू ( डाल्टेनगंज ) का बेतला नेशनल पार्क और हज़ारीबाग़ नेशनल पार्क का जिक्र आता है। इसके अलावा कोडरमा घाटी, सिंहभूम और अन्य जिलों में भी छोटे उद्यान हैं। पलामू को तो झारखण्ड का बाघ जिला भी कहा जाता है किन्तु इस साल के रिपोर्ट के अनुसार झारखण्ड में बाघों की संख्या काफी कम रही जो कि पर्यावरण प्रेमियों के बीच चिंताजनक स्थिति पैदा कर रही है। कई विशेषज्ञ तो ये कह रहे हैं की पलामू में एक भी बाघ नहीं बचा है।

Petition · Re evaluate this Jharkhand: Almost 3.5 Lakh Trees to Be ...


खनिज और वन संपन्न राज्य झारखण्ड का शाप 

झारखंड राज्य छत्तीसगढ़ के बाद देश में खनिज संपदा का प्रमुख उत्पादक है। देश के कुल खनिजों का 40% इस राज्य से पूर्ति होती है। जबकि कोकिंग कोयला, यूरेनियम और पायराइट उत्पादन करने वाला एकमात्र राज्य है। भारत में कोयला, अभ्रक, तांबे और क्राय नाइट के उत्पादन में पहले स्थान पर है। झारखंड राज्य का अर्थव्यवस्था और उद्योग धंधा काफी हद तक राज्य के प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर निर्भर करता है और शायद इसीलिए झारखंड को संसाधन शाप को भी भुगतना पड़ा है।
जहां एक ओर यह राज्य अपने प्रकृति को छेड़छाड़ करके देश को खनिज संसाधन उपलब्ध कराता है वही दूसरी ओर राज्य की करीब आधी जनसंख्या गरीबी का दंश झेल रही है और 5 साल उम्र से नीचे के बच्चों की पूरी संख्या का करीब 20% कुपोषित है। भुखमरी और गरीबी यह दो कारण है जो मानव को कोई भी कार्य करने पर विवश करता है। UNDP और oxfam poverty and human development की 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार भारत के आधे से ज्यादा गरीब बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में बसते हैं। हालांकि झारखंड में 2005-06 के मुकाबले 2016 में MPI (MULTIDIMENSIONAL POVERTY INDEX) 74.9% से घटकर 46.5% हुआ है। किंतु फिर भी झारखंड देश के सबसे अधिक संसाधन संपन्न राज्य होने के बाद भी गरीबी का दंश झेल रहा है। MPI ना केवल आर्थिक गरीबी को मापता है बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण, बाल मृत्यु, प्राथमिक विद्यालय में अटेंडेंस, स्वच्छता, पेयजल, बिजली को भी पैमाना मानकर रिपोर्ट तैयार करता है और इन सबको हम अगर झारखंड के परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह बात छुपाई नहीं छुपता है की खनिजों , प्राकृतिक संसाधनों और आदिवासियों की यह भूमि अपने निवासियों को यह सब उपलब्ध कराने में असमर्थ रहा है और असफल हुआ है।

एक छोटी सी कहानी से यह बात हम सब समझ सकते हैं:-
नीरज मुर्मू एक गरीब आदिवासी परिवार में पैदा हुआ जहां उसे दिन भर में मात्र एक बार भोजन नसीब होता था। जब तक नीरज 9 साल का नहीं हुआ तब तक परिवार उसके पिता ही अकेले चलाते थे। गरीबी की वजह से उसकी मां और नीरज पास के खदान में काम करने लगे थे। ऐसे में नीरज का स्कूल जाना संभव नहीं हुआ था और ना ही स्वच्छता शुद्ध पेयजल, बिजली आदि की सुविधा पाना। नीरज और उस जैसे अन्य बच्चों के लिए संसाधनों की यह भूमि झारखंड नर्क समान है क्योंकि चंद रुपयों के लिए केवल उनके माता-पिता बल्कि समाज, उद्योगपति और सरकारी सिस्टम नीरज जैसे बच्चों को कोईला या अभ्रक  खदान में उतार देते हैं। बचपन से ही फेफड़ों और श्वसनतंत्र में बीमारियां घर करने लगती है और इस वजह से बाल मृत्यु दर बढ़ता है। खदानों में विस्फोट लापरवाहीओं के वजह से जाने कितने ही बच्चे काल कवलित हो जाते हैं। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस राज्य में नीरज जैसे लाखों बच्चों को अपना बचपना खोना पड़ता है। यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि 2016 REUTERS रिपोर्ट के मुताबिक खदान में जो बच्चे मरते हैं उनकी गिनती इसलिए नहीं की जाती है ताकि बाल मृत्युदर को कम रखा जाए। वही दूसरी बात जो ध्यान देने योग्य और चिंताजनक है वो है चौदह वर्ष से कम उम्र लड़कियों की स्थिति। उन्हें न केवल घर संभालना पड़ता है बल्कि कठोर मेहनत करनी पड़ती है कुछ पैसे कमाने के लिए और पेय जल लाने के लिए।

राज्य में आदिवासियों की स्थिति

झारखंड राज्य में करीब 32 जनजातियों का निवास है। जिनमें मुख्य हैं मुंडा, संथाल, उरांव, गोंड, कोल, कवर, सबर, बैगा, चेरो, हो, कोरबा आदि। राज्य में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या करीब 26% है। इनमे से ज्यादातर गांव में बसते हैं। ये कृषि, जंगल, आखेट, आदिवासी कला, माइनिंग से जीवन निर्वाह करते हैं। इनमें से अधिकतर की अपनी संस्कृति और भाषा है। बहुत सी जनजातियों की जीवन शैली अभी तक प्रकृति पर निर्भर है। वस्तुतः भूमि और जंगल को नुकसान पहुंचाए बिना जीवन यापन करने में विश्वास रखते हैं परंतु इधर के कुछ दशकों में इन आदिवासियों को अपनी जमीन को खोना पड़ा है जिसका मुख्य कारण औद्योगिकीकरण है। इन वजह से पलायन आदिवासियों का सच बन गया है आदिवासियों को बाहरी लोगों से भी परेशान होना पड़ा है। व्यापक खनन ने घने जंगलों और उपजाऊ कृषि भूमि को नष्ट कर दिया, जो आदिवासी आत्मनिर्भर थे उन्हें कांटेक्ट लेबर. कुली, कंस्ट्रक्शन वर्कर और घरेलू दाई के रूप में काम करने को मजबूर होना पड़ा। जो आदिवासी अपने बच्चों को  हजारों साल पुरानी उच्च संस्कृति और समाज का हिस्सा बनाए हुए थे उन्हें अब अपने बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा का ख्याल नहीं रहा। मां समान जंगलों से निकलकर शहरों में पलायन करना पड़ा।

प्रशांत



REFERANCES : 

1 )   https://www.financialexpress.com/economy/jharkhand-lifts-most-people-out-of-poverty-still-remains-among-poorest-states/1644302/#:~:text=Eastern%20state%20Jharkhand%20has%20made,2016%2C%20The%20Indian%20Express%20reported.

2  ) https://www.reuters.com/article/us-india-slavery-mica/with-new-data-india-plans-to-fight-child-labor-in-mica-mines-idUSKBN1O41EU

 3 ) https://www.businesswireindia.com/sustainable-mica-policy-and-vision-prepared-by-responsible-mica-initiative-with-jharkhand-government-and-civil-society-support-68955.html

 4 ) https://en.wikipedia.org/wiki/Jharkhand#Education

5 )  https://www.mapsofindia.com/jharkhand/geography-and-history/flora-fauna.html

6 ) https://www.telegraphindia.com/jharkhand/tigerless-palamau-reserve-to-celebrate-global-tiger-day/cid/1787479