Friday 27 March 2020

छुट्टियों का सदुपयोग

कोरोना महामारी से लोगों को बचाने के उपायों में सबसे प्रभावकारी और चर्चित उपाय है लॉक डाउन जिसने लोगों को अपने घरों में सीमित संसाधनों के बीच कैद कर दिया है। यह बीमारी क्योंकि दुनिया के लिए नई है इस वजह से इसकी दवाई उपलब्ध नहीं है। परंतु इतने कम समय में इस संक्रामक बीमारी ने दुनिया के करीब 200 देशों को चपेट में लिया है उससे विशेषज्ञों और सरकारों के कान खड़े हो गए हैं।
इस वजह से सोशल डिस्टेंसिंग और लॉक डाउन का फैसला दुनिया के प्रत्येक देश में लिया गया ताकि इसके फैलाव को रोका जा सके। भारत में भी सरकारी घोषणा हो चुकी है कि 15 अप्रैल तक लोग अपने घरों से (जब तक अति आवश्यक ना हो) ना निकले, ऐसे में लोगों को काफी समय मिल गया है जिस का सदुपयोग किया जा सकता है।
तो आइए हम कुछ साधारण उपायों के बारे में पढ़ें जिससे ना केवल अचानक उपजे खालीपन को खत्म करने में मदद मिलेगी बल्कि जीवन में हमसे जो छूट रहा था उसे फिर से पकड़ने में भी मदद मिलेगा।(यहाँ कुछ सुझाव भी क्रमवार देने का मैंने प्रयास किया है। इससे इतर कुछ आपके मन में है तो हमसे जरूर शेयर करे।)

1- किसी अधूरे काम को पूरा करें
अक्सर ऐसा होता है कि हम भागदौड़ की इस जिंदगी में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि एक काम को खत्म नहीं करते हैं कि अगला काम शुरू हो जाता है ऐसे में अधूरे कामों की एक लंबी लिस्ट बनती जाती है। बहुत से काम कठिन होते हैं उस वजह से भी पेंडिंग लिस्ट में चले जाते हैं। अधिक कठिन कार्यों के सरल तरीके ढूंढिए और उसे पूरा करने में लग जाए। खाली बैठने से कुछ काम करना अच्छा होता है।कुछ काम निम्न हैं :-
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घर की और आसपास की सफाई करें
-अपने रूम को पुनः व्यवस्थित करें
-पुरानी अखबारों मैगजीन और पुस्तकों को छांटें

2 अपनी आदतों पर काम करें                                                                                                             जीवन शैली में बहुत से परिवर्तन हुए होंगे जिन्हें आपने या तो नोटिस नहीं किया होगा या फिर किया भी होगा तो टाल गए होंगे।बहुत से परिवर्तन बुरी आदत का रूप ले चुकी होगी आप उन आदतों को छोड़ने का प्रण ले सकते हैं। जैसे अगर आप सिगरेट पीते हो तो आप यह निश्चय कर सकते हैं कि आप आगे से सिगरेट नहीं पिएंगे। ऐसे ही कुछ अच्छी आदतों को आप अपने जीवन में सम्मिलित कर सकते हैं जैसे प्रत्येक सुबह आप टहलने का निश्चय करें और पाएंगे कि अगले कुछ दिनों में शरीर ज्यादा उर्जावान हो गया है और मन प्रसन्न चित्त हो गया है।


3 रुचियां को विकसित करें
मेरी रुची पर एक निबंध सैंपल 

आप सब ने स्कूली दिनों में मेरी रुचि पर निबंध अवश्य लिखा होगा उस वक्त वह शौक वाकई में होते थे पर जैसे-जैसे समय का पहिया घूमता है लोग अपने शौक तक को भी भूल जाते हैं। यह सही समय है जब आप अपने शौक को फिर से जिंदा करें, इससे ना केवल बोरियत या ऊब खत्म होगी बल्कि काम और जीवन के प्रति उत्साह भी बना रहेगा। 

- संगीत नृत्य में रुचि रखने वाले इस खाली समय में सबसे अधिक प्रसन्न होना चाहिए।आप घर पर रियाज या अभ्यास कर सकते हैं और सोशल मीडिया व अन्य ऐप के माध्यम से दुनिया से साझा भी कर सकते हैं। रेडियो, टीवी, स्मार्टफोन एप का उचित प्रयोग आप अपने मनपसंद गीत सुनने या डांस शो देखने में कर सकते हैं

- अगर आप खानपान के शौकीन हैं तो नए डिश ट्राई करना सीमित संसाधनों के बीच और घर के अन्य सदस्यों को सिखाना आपको निश्चित रूप से अच्छा लगेगा। यह केवल दादी नानी का काम तो नहीं है
- अगर आप वीडियो बनाने के शौकीन हैं तो अपना कौशल और क्षमता का प्रदर्शन दुनिया के सामने करने में बिल्कुल भी नहीं घबराए इसके लिए बहुत से ऐप भी उपलब्ध हैं
- अगर आपकी रुचि कविताओं या गजलों में है तो आप कविता पाठ कर सकते हैं और अपने दोस्तों से शेयर कर सकते हैं
- लेखन में रुचि है तो खूब लिखे और हां हमसे शेयर करना ना भूलें
- किताबें पढ़ने के लिए क्या चाहिए होता है अच्छी किताब और एकांत, तो उसके लिए सबसे बेहतरीन समय यही है
- पेंटिंग का शौक है तो इस समय का उपयोग करें और अपने पूरे घर को आर्ट गैलरी में तब्दील करें
- आप में से कुछ की रुचि बागवानी में भी हो सकती है तो इस खाली समय का आप उपयोग कर सकते हैं अगर आपके घर के पीछे कुछ खाली जमीन है तो फूल पौधे या सब्जियां उगाने में कुछ समय दें अन्यथा छत पर बागवानी की जा सकती है

नोट  - कुछ लोगों की रुचि हॉर्स राइडिंग या स्विमिंग में भी होगी पर मेरा सुझाव रहेगा कि कुछ नए दोषियों पर काम करने का यह सही वक्त है।


4 योजनाओं पर काम करें
ऐसे समय में जब भविष्य दिख ही नहीं रहा हो तो भविष्य की योजनाएं बनाना थोड़ा अटपटा लग सकता है आप सबको पर फिर उम्मीद पर दुनिया कायम है कि फिलॉस्फी पर चलकर हमें सुंदर भविष्य के सपने अवश्य देखना चाहिए इससे ना केवल तनाव कम होता है बल्कि मन भी प्रसन्न चित्त रहता है।
तस्वीर साभार इंटरनेट 

-एक लॉन्ग टर्म गोल बनाएं और उसके बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करें उनको फिर आप सालभर महीना और सप्ताह के हिसाब से बांट लें और काम शुरू कर दें
-10 साल बाद के अपने जीवन की कल्पना करें और हर एक पहलू को गौर से निरीक्षण करें। यह क्रिया आपको जीवन को और उत्साह से जीने में मदद करेगा

5 games खेलें
खेल किसे पसंद नहीं होता है ?
यह बात अलग है कि कुछ लोगों को आउटडोर गेम्स पसंद होते हैं तो कुछ लोगों को इंडोर गेम्स। आज के अधिकतर युवा तो स्मार्टफोन पर वीडियो गेम्स खेलते हैं। कुछ लोगों को राजनीति खेलना भी अच्छा लगने लगा है पिछले कुछ वर्षों में। व्यापारियों के खेल तो बहुत मायनों में श्रेष्ठ होते हैं। पर इन दिनों हमें बचपन के कुछ इनडोर गेम्स पर फोकस करना चाहिए। यह समय काटने में तो मदद करेगा ही साथ में परिवार से जुड़ने में भी मदद करेगा।


6 स्वयं पर काम करें
वैसे तो व्यक्तित्व विकास एक बहुत ही बड़ा टॉपिक है और पिछले 20 सालों में इसमें काफी नए आयाम जुड़ते गए हैं परंतु कुछ छोटे-छोटे उपायों से हम घर बैठे स्वयं पर काम कर सकते हैं।
तस्वीर साभार WIKIHOW 
-आत्मध्यान                                                                                                                             कहते हैं, दौड़-भाग की इस जिन्दगी में अगर हम कुछ पल सुकून के चाहते हैं, तो आत्मध्यान से बेहतरीन उपाय कोई और नहीं हो सकता. आत्मध्यान से हमारे तन-मन-धन तीनों को काफी सुकून मिलता है. इसके लिए आप किसी एकांत जगह पर बैठ कर भगवान के नाम का ध्यान लगा सकते हैं. इसके अलावा ध्यान के लिए यू-ट्यूब का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। 
-प्राथना प्रार्थना कीजिये, प्रार्थनाएं हमें सहन करने की क्षमता देती हैं हमारी आत्मा को उज्ज्वल करती हैं. दुआ कीजिये सब स्वस्थ रहें सबके घर के चूल्हे जलते रहें. 

-शरीर माध्यम खलु धर्म साधनम्                                                                                                               अगर आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि पिछले कुछ सालों से आफ कंफर्ट के पीछे कुछ ज्यादा ही भागने लगे हैं शारीरिक श्रम तो सुनने ही हो गया है कईयों जीवन में। इससे जीवन शैली पर बहुत बुरा असर पड़ा है गांधी जी ने 3h का सिद्धांत दिया था जिसमें हाथ हृदय और मस्तिष्क पर क्रमवार काम करने को कहा गया था। भारतीय संस्कृति में हमेशा से ही शारीरिक श्रम को बहुत महत्व दिया गया है।छुट्टियों को केवल सोने और स्मार्टफोन पर खर्च ना करें बल्कि प्रतिदिन कुछ घंटे शारीरिक श्रम के लिए भी निकालें फिर चाहे आप सुबह कुछ व्यायाम करें या फिर घर के बगीचे में कुछ काम करें आप अपने खेतों में भी मेहनत कर सकते हैं शारीरिक परिश्रम के अनगिनत फायदे में एक फायदा यह भी है कि यह मन से तनाव को दूर करता है।  

-छत पर एक स्थान पर नियमित रूप से कुछ अनाज के दाने और पानी आप पंछियों और गिलहरियों के लिए भी रखें इससे आपके जीवन में संतोष का भाव भरेगा

-कोई नया म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट बजाना सीखे इससे आपके मस्तिष्क का विकास होगा और एकाग्रता भी बढ़ेगी
- नई भाषा सीखने का प्रयास करें
-ऑनलाइन पढ़ाई करें
-प्रतिदिन एक व्यक्ति को धन्यवाद करने का प्रयास करें

-रिश्तो को समय दें
इस युग में पैसा कमाना जरूरी है इसके बिना जीवन का गुजारा संभव नहीं है परंतु यादें पैसों से नहीं बनती है। यादें बनती है परिवार से दोस्तों से परिवेश से और समाज से तो अब यह अवसर आया है कि आप अगले कुछ दिनों के लिए घर में फंस गए हैं तो आप समय बिताएं अपने परिवार के साथ। बच्चों के साथ मटरगश्ती करें और बुजुर्गों के साथ दुनिया जहान की बातें करें घर के उन हिस्सों में भी जाएं जहां आप पहले नहीं जा पाते थे शुभचिंतकों से बातचीत करने का भी यही समय है तुरंत बिना कुछ सोचे समझे फोन लगा दे अपने मित्रों को

-घरेलू पशुओं और मवेशियों की देखभाल करें पशुओं को उतना ही प्रेम चाहिए होता है जितना कि किसी मनुष्य को

तस्वीर साभार इंटरनेट 




7 रचनात्मक कार्य करें
सृजन की क्षमता हर किसी में होती है बस प्रयास करने की आवश्यकता होती है। रचनात्मक कार्य ऑफिस के काम की तरह नहीं होता है यह समय मांगता है धैर्य मांगता है और एकाग्रता मांगता है उसके बाद ही आप कुछ अच्छा रच सकते हैं।

 -खुद की डायरी लिखें

बहुत से लोगों को स्कूल टाइम से डायरी लिखने की आदत होती है, मगर वक्त जैसे-जैसे बढ़ता वह इससे दूर हो जाते हैं. आपको बताते चलें, कि डायरी लिखने के अनेकों फायदे हैं. कई बार तो लोग लिखते-लिखते इतने माहिर हो जाते हैं कि किताबें तक लिख देते हैं. आप भी अपना खाली समय डायरी लेखन में लगा सकते हैं. अपने ख़ास पलों को, अपनी तस्वीरों को उसमें कैद कर सकते हैं. लिखना सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद  होता है, क्योंकि कई बार हमारे दिल में ढ़ेर सारे भाव होते हैं, जिन्हें हम किसी से कहने में संकोच करते हैं. आगे चलकर यही भाव धीरे-धीरे ज्यादा हो जाते हैं और ब्लड पेशर जैसी कई बिमारियां हमें घेर लेती हैं. इसलिए अच्छा होगा कि हम अपना खाली समय डायरी लेखन में लगाये। 

-एक स्क्रैपबुक बनायें 

-कपडे या ज्वेलरी डिज़ाइन करे 

-नाखूनों पर आर्ट बनाये 

-किसी ख़राब पड़ी साइकिल या पंखे को बनायें 

-लघु फिल्म बनायें 


8 कुछ नया सीखें 
संसार हर बीतते सेकेंड के साथ परिवर्तित हो रहा नई चीजों और नई विधाओं की मांग और तेज होती जा रही है। अगर आप कुछ नया नहीं सीख पाते हैं तो आप वहीं रह जाएंगे जहां से आपने सफर शुरू किया था इसलिए कुछ नया सीखते रहें।
-कोडिंग करना सीखें
-कंप्यूटर चलना सीखें
-इंटरनेट सर्फिंग करें
-ऑनलाइन मार्केटिंग सीखें

9 टाइम पास करे

-बर्ड वाचिंग
-स्टार गेजिंग
-फिल्में  देखना
-पैसे बचाने के उपाय सोचना
आप इन बचे हुए पैसों का प्रयोग अपने लिए कपड़े खरीदने के लिए कर सकते हैं या फिर किसी को गिफ्ट करने के लिए कुछ खरीद सकते हैं।
-फोटो एल्बम को दोबारा पलटना
फोटो एल्बम को दोबारा पलटने में जो आनंद है शायद वह किसी अन्य काम करने में नहीं है इससे न केवल समय पास होता है बल्कि पुरानी यादें भी घुमड़ घुमड़ कर दिमाग में आती है आप ही पलटे और यादों को ताजा करें।

और सुझावों के इंतज़ार में
आपका
प्रशांत 

Tuesday 24 March 2020

जंग: कोरोना और बिहार

प्रतीकात्मक तस्वीर 

बिहार जिसे अभी तक बीमारू राज्यों में शुमार किया जाता रहा है या कहूँ सबसे ऊपर रखा जाता रहा है वह भी अछूता नहीं है कोरोना की दहशत से। आधिकारिक सूत्रों  के अनुसार कल शाम तक 3 लोगों की मृत्यु  ( बिहार में ) हुई इस बीमारी की वजह से।  ऐसे में मन में संदेह उठना लाजमी है कि अगर यह संख्या अचानक से बढ़ने (जैसा की स्टेज 3 के बारे में कहा जा रहा है ) लगे तो क्या बिहार (सरकार और लोग ) इसे थाम लेने की क्षमता रखता है ? राज्य की जनसँख्या करीब 12 करोड़ है और प्रति 29000 नागरिक पर एक डॉक्टर है, 8600 लोगों पर एक बेड है वह कैसे और कितनी तैयारी कर पाया है इस महामारी से लड़ाई का?बिहार में कोरोना से सबसे पहली मौत PMCH में हुई और मौत के बाद पता चला की वह व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव था, तब तक ना जाने कितने लोग असावधानी की वजह से संक्रमित हो चुके होंगे (यह केवल अनुमान नहीं हैं ),
गया में तो एक व्यक्ति को हॉस्पिटल से ले जाकर चिता पर लेटाया जा चूका था तब टेस्ट के लिए सैंपल लिए गए।  ऐसा इसलिए भी क्यूंकि जहाँ भारत के अन्य राज्यों में COVID -19 की 2 से 3 टेस्ट सेण्टर बनाये जा चुके है उसके मुकाबले सूबे में अभी तक केवल एक ही टेस्ट सेण्टर बन पाया है वह भी RMRI में। इसकी एक वजह टेस्ट किट की कमी  है, 100 से 150 की संख्या में टेस्ट हुए हैं जो एकदम नगण्य है।

संभव हो हम सोचते हैं कि युद्ध में जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है पर क्या केवल शहीद होने के लिए भी तैयारी नहीं होनी चाहिए ? पिछले साल की बात है एक अज्ञात बीमारी ने सूबे के मुजफ्फरपुर जिले में दस्तक दी, जबतक इसका नामकरण हुआ तबतक जिले के कई नौनिहालों की जान जा चुकी थी। बिहार के अस्पताल अव्यवस्थित तो पहले से ही थे, गरीब माताओं की चीख-बुखार से वे और गूंज उठे। जब तक दिल्ली की विशेषज्ञों की टीम इसकी जाँच करने पहुंची तब तक हमारे हुक्मरानों और लोगों ने लीची को दोष देना उचित समझा। खैर हमें तो अभी तक पता नहीं चल पाया की चमकी बुखार ने मिडिया और समाज के उच्च वर्गों का ध्यान क्यों नहीं खिंचा पर इतना तो जरूर पता चल गया कि चिकित्सीय क्षेत्र में बिहार भगवान भरोसे ज्यादा है, महामारी और आपदा झेलने का दम तो बिहार के पास खैर है ही नहीं। ऐसे में अगर लोग घरों में बैठकर COVID -19 से बचने के उपाय ( हाथ धोना ) करे नहीं तो क्या करेगा?

राज्य के नामी सरकारी अस्पतालों की हालत भी सबसे छुपी नहीं है। जिला अस्पतालों को तो छोड़ ही दे हम।  ऐसे में प्राइवेट अस्पतालों की ओर  देखना तो पाप ही होगा जबतक रुपया नमक गंगाजल पैकेट में न हो।
बिहार में धनाढ्य लोगों की संख्या बहुत ही कम है। जो बिहारी है वो न केवल प्रति व्यक्ति आय कम पाते है बल्कि शिक्षा और जागरूकता  भी उतना ही मिल पाता है। ऐसा नहीं है कि जनता कर्फ्यू का पालन बिहार ने नहीं किया है, मुझे तो ऐसा लगता है कि शाम पांच बजे सबसे अधिक आवाजें भी इस राज्य से ही आयी होगी, भले अधिकतर बिहारी यह भी नहीं जान पाएं हो कि ऐसा वह क्यों कर रहे है। गांवों में देर शाम तक कानाफूसी होती रही कि शायद कोरोना से लड़ने का सबसे बेहतरीन तरीका यही था। निश्चित तौर पर तरीका तो यही था पर जो मोर्चे पर लड़ाई लड़ रहे थे उनके धन्यवाद ज्ञापन के लिए न कि विजय में फूल जाने के लिए। कुछ लोगों ने तो पटाखें तक फोड़े,उससे कोई दिक्कत हमें नहीं होनी चाहिए। हमें  दिक्कत तो इस बात से होनी चाहिए कि वे लोग नहीं जानते थे कि वे क्या कर रहे है ? कारण जो भी हो पर अगर  निदान मिलेगा ऐसा  मानकर घर में अनिश्चितकाल तक बैठे रहना बिहार के लिए सबसे बड़ी बेवकूफी होगी ?
WHO के वेबसाइट का स्क्रीनशॉट 

ऐसे समय में जब COVID -19 विश्व के 200 से अधिक देशों को अपनी चपेट में ले चुका है और उसमे भी इटली , अमेरिका जैसे विकसित देश इससे लड़ने में अभी तक विफल रहे तो 130 करोड़ की आबादी वाला भारत और उसमे भी हर चीज को मजाक में लेनेवाला बिहार की इस युद्ध (कोरोना के विरूद्ध ) की क्या रणनीति है और किन मोर्चों पर कितनी तैयारी है यह बात अगर हर सिपाही को न पता हो तो क्या हमें डरना नहीं चाहिए ? युद्ध की बात चली है तो कई और बातें जो इसे जितने में निर्णायक होती है उंप्पर भी हलकी चर्चा करना चाहिए। सबसे जरुरी तो यह है कि दुश्मन की कितनी जानकारी हमारे पास है ? दूसरी महत्वपूर्ण बात है कि हर सिपाही को अपने नायक पर भरोसा होना चाहिए और उन्हें मालूम  कि  वे आखिर लड़ क्यों रहे है ? तीसरी महत्वपूर्ण  बात यह है कि युद्ध को समाप्त करने की क्या रणनीति है और कितना संसाधन (दवाई ,भोजन आदि ) का प्रयोग उसमे होगा ?
बिहार के मामले में भी हम बात करें तो यह हम अभी तो बिलकुल भी नहीं कह सकते है कि बिहार COVID-19 से लड़ने को तैयार है  कोई और विकल्प नहीं है एवं आत्मसमर्पण हम कर नहीं सकते तो इतना तो अवश्य होना चाहिए कि अब तैयारियां युधःस्तर पर ही हो। परन्तु शायद सरकार और प्रशासन अभी भी मुस्तैद नहीं हो पायी ही। आप हरेक सिपाही को बुलेटप्रूफ जैकेट नहीं दे सकते है पर बन्दुक तो अवश्य दिया जाना चाहिए। परसो खबर आयी कि मास्क और PPE कीट की कमी की वजह से बिहार के एक प्रसिद्द अस्पताल के डॉक्टरों ने ICU बंद कर हड़ताल कर दिया। ऐसा तो नहीं होना चाहिए था पर हुआ और शायद आगे भी होता रहेगा जब तक कि हरेक सिपाही अपने नायक से सकारात्मक जवाब तालाब न करे। डॉक्टरों और नर्सों तक के भय अगर सरकार  कर पाएगी तो आम जन का क्या हाल होगा ? 
WHO ने COVID -19 को 11 मार्च को महामारी घोषित  कर दिया था पर उससे करीब दो महीने पहले ही इसे वैश्विक मेडिकल इमरजेंसी  घोषित भी किया था। संभावित युद्ध की जानकारी हर सिपाही को नहीं होती है यह सच है पर सरकार और उसकी इंटेलिजेंस टीम क्या इतने दिनों से सो रही थी कि युद्ध के मुहाने पर आने के बाद तैयारियां शुरू की गयी ?
बिहार में सभी अस्पतालों में पर्याप्त सुविधाएँ नहीं है, बहुतों में तो डॉक्टर और मुलभुत दवाइयां तक अनुपलब्ध है, ऐसा नहीं है कि यह जानकारी अभी पता चली बल्कि कई सालों  से ऐसा ही हाल है पर फिर भी सरकारी महकमा पता नहीं किस दम्भ में ऐंठा रहता कि सुविधाएँ उपलब्ध नहीं करा पाती है। सर्दी,खासी हो तो बिहारी बर्दाश्त करते है,बच्चों की बीमारियां गांव का कोई झोलाछाप डॉक्टर (मैं ऐसा उन्हें नहीं मान सकता क्यूंकि उनके बदौलत कई जिंदगियाँ बचती है ) ठीक करता है। हाथ -पैर टूट जाने पर प्राइवेट क्लिनिक वाले कमाते है पर कैंसर,चमकी,एड्स आदि इमरजेंसी के लिए बिहारियों के पास क्या विकल्प है सिवाए PMCH ,IGIMS ,DMCH,AIIMS जैसे दो चार गिने चुने अस्पतालों के अलावा वैसे लोग तो AIIMS दिल्ली तक जाते हैं पर वहां का नेता शायद बिहारियों से उतनी ही नफरत करता है जितना एक भाई-दूसरे भाई से करता है।  वैसे मध्यम वर्ग  के लोग किसी तरह कर्ज वगैरह करके रांची, भेल्लोर, कलकत्ता आदि भी पहुंचते है पर सड़कों और एम्बुलेंस के चक्कर में भी कई जानें चली जाती है। अधिकतर लोगों को CONSULT YOUR DOCTOR का मतलब ही नहीं पता होता है। ऐसे में डर लगना लाजमी है जब ह्रदय और ब्रेन से सम्बंधित इमरजेंसी बिमारियों के बारे में कुछ सुनते है तो। बिहार के लोग किसी तरह टूटे हुए दांत से और कम दिखती आँख से काम चला लेते हैं किन्तु इस COVID -19 नमक नयी बाला से ऐसे लड़ेंगे ? न केवल बिहार पर भारत के अधिकतर राज्यों की कमोबेश यही हालत है,लोग मुलभुत चिकित्सीय सुविधाओं की उम्मीद सरकार से नहीं करते है। गरीबी इसका एकमात्र कारण है ऐसा भी नहीं कहा  जा सकता है। जीवन जीने का मोह हर किसी को है चाहे कोई व्यक्ति गरीब हो या अमीर। यह तो नहीं कह सकते कि लोग मरने के लिए तैयार बैठे हैं, लेकिन अगर स्थिति आती है जैसे अभी आयी है तो क्या हम इसपर फिर से दोबारा सोच नहीं सकते है कि लोगों ने केवल राज करने के लिए  सरकारें नहीं चुनी है न।मुश्किल वक़्त में सही नेतृत्व का आभाव न हो यह भी तो जरुरी है। प्रबंधन के लिए  भी हम उनकी  ओर देखते हैं और उम्मीद लगाते हैं जो हमसे हमसे अधिक होशियार हो और कम से कम से संसाधनों  अधिक कैसे निकाले यह जानता हो। देशहित में अगर नायक उचित फैसले न ले पाए और लोगों को बुनियादी सुविधाएँ तक उपलब्ध न करा पाए तो कहीं न कहीं तो चूक हुई है ऐसा मानना चाहिए। हर साल भारतीय टैक्स भरते हैं और उसके साथ कम से कम इतना तो उम्मीद करते हैं कि इनका प्रयोग देशहित में होगा। अगर हम यह उम्मीद न भी करे तो यह पूछने में क्या बुराई है कि भारत में COVID -19 की टेस्टिंग की सुविधा दो महीनो में पूरी क्यों नहीं की गयी ?
-अस्पतालों को मास्क,दवाइयां,बेड ,वेंटीलेटर और कर्मचारियों से लैश क्यों नहीं किया गया ?
-हरेक जिले में कम से कम बाहर से आ रहे लोगों के लिए जाँच की व्यवस्था और आइसोलेशन की व्यवस्था युधःस्तर पर क्यों नहीं की गयी ?
-बस स्टैंड,हवाई अड्डों और रेलवे स्टेशनों पर यात्रियों की स्क्रीनिंग में और लापरवाही क्यों बरती जा रही है? -बिहार में मात्र एक टेस्ट सेण्टर के भरोसे काम हो रहा है, हरेक जिला में आधुनिक अस्पतालों की नीव अभी तक क्यों नहीं पड़ी थी ?
-लॉक डाउन की तैयारियां कितनी हुई है और कौन कौन सी टीमों के भरोसे बहार से आ रहे संदेहास्पद लोगों को आइसोलेट किया जा रहा है ?
-कहने में बड़ा आसान है कि हम खुद को लॉक डाउन कर लें या क्‍वॉरेंटाइन की प्रक्रिया को अपना लें मगर इस देश में ऐसे कई लोग हैं जो क्‍वॉरेंटाइन का मतलब भी नहीं समझते हैं। खासकर दिहाड़ी पर काम करने वाले मज़दूर अगर खुद को क्‍वॉरेंटाइन करेंगे तो खाएंगे क्या?
-मुंबई जैसे महानगर से मजदूर लौट कर आ रहे हैं वो भी खचाखच भरे ट्रेनों में, इस बात का संज्ञान कौन ले रहा है ?
-उनको आज से स्कूलों में रखने की व्यवस्था हो रही है। कल तक दानापुर जैसे स्टेशन पर लापरवाही की खबरे आ रही थी जो की पटना में है तो गांवों में खंडहर हो चुके स्कूलों में क्या व्यवस्था एक दिन हो पाई होगी?
-क्या हमारे पास वह व्यवस्था है कि हम उनके लिये खाना, दैनिक कर्म की सुविधा और डॉक्टर उपलब्ध करा पाएंगे?
-क्या लॉक डाउन करने से होने वाली समस्यायों और अफवाहों से निबटने की तयारी की गयी है ?
- क्या बिहार जैसे राज्यों के टोलफ्री पर कुछ अनुभवी और शालीन लोगों को बैठाया गया कि पहले जैसे ही अभद्रता से पेश आने वाले लोग बैठे है ?
राज्यों के नंबर 


 "जब जागो तब सवेरा" किसने नहीं सुना होगा इस कहावत को ? वैसे तो इस कोरोना ने सबकुछ उल्टा ही कर दिया है लेकिन फिर भी ज्यादा देर नहीं हुई है। दोष और भी निकाले जा सकते है पर अभी दोष निकालने का समय नहीं है, अभी तो चेत जाने का समय है , अभी सतर्क होने और सावधान करने का समय है। इस मुश्किल दौर में भी उम्मीद हमें छोड़नी नहीं चाहिए पर यह अवश्य याद रखना चाहिए हमें कि रोकथाम हमेशा ही  इलाज से बेहतर रहा है। 
इटली जैसा विकसित देश जिसका चिकित्सा क्षेत्र में हमेशा ही नाम लिया जाता रहा वह भी हार गया,निश्चित तौर पर कुछ गलतिया हुई होगी पर हम बिहारवासी क्या सीख सकते हैं उनकी गलतियों से , इसपर चर्चा और विमर्श करनी चाहिए। हम वह सब नहीं झेल सकेंगे जो इटली और अमेरिका ने बर्दाश्त किया है। 






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135 करोड़ की आबादी पर भारत में केवल 40 हजार वेंटिलेटर